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vrindavan-वृन्दावन

वृन्दावन(vrindavan)भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक नगर है। यभगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है। यहाँ विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं ।
 जानिए tirupati balaji एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल
बांके विहारी जी का मंदिर, श्री गरुड़ गोविंद जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का,श्री पर्यावरण बिहारी जी का मंदिर बड़े प्राचीन हैं ।
vrindavan
vrindavan-temple
इसके अतिरिक्त यहाँ श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिरप्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर। निधि वन ,श्री रामबाग मन्दिर आदि भी दर्शनीय स्थान है।

(vrindavan)इतिहास

17वीं सदी के श्री राधा मदन मोहन मंदिर का निर्माण करौली राजवंश के राजा गोपाल सिंह जी ने करवाया था वृन्दावन का एक प्राचीन अतीत है, जो हिंदू संस्कृति और इतिहास से जुड़ा है, और इसकी स्थापना 16वीं और 17वीं शताब्दी में मुसलमानों और हिंदू सम्राटों के बीच एक स्पष्ट संधि के परिणामस्वरूप हुई थी, और यह लंबे समय से एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल है।

समकालीन समय में, ग्यारह वर्ष की आयु में वल्लभाचार्य ने वृन्दावन का दौरा किया। बाद में उन्होंने भारत की तीन तीर्थ यात्राएं कीं और 84 स्थानों पर भगवत गीता पर प्रवचन देते हुए नंगे पैर गए। इन 84 स्थानों को पुष्टिमार्ग बैठक के नाम से जाना जाता है और तब से ये तीर्थ स्थान हैं। फिर भी, वह हर साल चार महीने वृन्दावन में रहते थे। इस प्रकार वृन्दावन ने उनके पुष्टिमार्ग के निर्माण को अत्यधिक प्रभावित किया।

बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन(vrindavan)

16वीं शताब्दी तक मथुरा वृन्दावन(vrindavan)का सार समय के साथ खो गया था, जब इसे चैतन्य महाप्रभु द्वारा फिर से खोजा गया था। वर्ष 1515 में, चैतन्य महाप्रभु ने कृष्ण के जीवन से जुड़े खोए हुए पवित्र स्थानों का पता लगाने के उद्देश्य से वृन्दावन (vrindavan) का दौरा किया।

पिछले 250 वर्षों में, वृन्दावन के विस्तृत वनों का शहरीकरण किया गया है, पहले स्थानीय राजाओं द्वारा और हाल के दशकों में अपार्टमेंट डेवलपर्स द्वारा। वन क्षेत्र सिमट कर केवल कुछ ही शेष स्थानों तक सिमट गया है, और मोर, गाय, बंदर और विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियों सहित स्थानीय वन्यजीव लगभग समाप्त हो गए हैं।

धार्मिक विरासत

वृन्दावन(vrindavan)में भजन गाते इस्कॉन भक्त

वृन्दावन को हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने अपने बचपन का कुछ समय इसी शहर में बिताया था। वृन्दावन के आसपास के अन्य प्रमुख क्षेत्र हैं गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना, मथुरा और भांडीरवन। वृन्दावन के साथसाथ ये सभी स्थान राधाकृष्ण की आराधना का केन्द्र माने जाते हैं।

राधा कृष्ण के लाखों भक्त हर साल कई त्योहारों में भाग लेने के लिए वृन्दावन और उसके आसपास के क्षेत्रों में आते हैं। ब्रज क्षेत्र में इसके निवासियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला आम अभिवादन या अभिवादन हैराधेराधेजो देवी राधा या हरे कृष्ण से जुड़ा है जो कृष्ण से जुड़ा है। कृष्ण के भक्तों का मानना है कि वह राधा की पूजा करने के लिए हर रात शहर में आते हैं। 

मंदिर

रंगनाथजी मंदिर, वृन्दावन(vrindavan)

राधा कृष्ण की भूमि, वृन्दावन में लगभग 5500 मंदिर हैं जो उनकी दिव्य लीलाओं को प्रदर्शित करने के लिए समर्पित हैं। कुछ महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं

कालीदह घाट के पास स्थित श्री राधा मदन मोहन मंदिर का निर्माण मुल्तान के कपूर राम दास ने करवाया था। वृन्दावन(vrindavan) के सबसे पुराने मंदिरों में से एक, यह चैतन्य महाप्रभु से निकटता से जुड़ा हुआ है। मदन गोपाल के मूल देवता को औरंगजेब के शासन के दौरान सुरक्षित रखने के लिए मंदिर से राजस्थान के करौली में स्थानांतरित कर दिया गया था। आज, मंदिर में मूल (देवता) की प्रतिकृति की पूजा की जाती है

श्री राधा रमण मंदिर, गोपाल भट्ट गोस्वामी के अनुरोध पर बनाया गया है और इसमें राधा के साथ राधा रमण के रूप में कृष्ण की एक शालिग्राम मूर्ति है।

बांके बिहारी मंदिर, स्वामी हरिदास द्वारा निधिवन में बांकेबिहारी की छवि की खोज के बाद 1862 में बनाया गया था।

राधावल्लभ मंदिर वृन्दावन के प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1585 . में किया गया था और यह लाल बलुआ पत्थरों से बना पहला मंदिर था।

राधा दामोदर मंदिर एक गौड़ीय वैष्णव मंदिर है, जो राधा कृष्ण को समर्पित है और इसका निर्माण 1542 . में किया गया था।

श्री कृष्णबलराम मंदिर का निर्माण रमनरेती में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) द्वारा किया गया था। इस मंदिर के प्रमुख देवता कृष्ण और बलराम हैं, उनके साथ राधाश्यामासुंदर और गौरानितई भी हैं। मंदिर के बगल में इस्कॉन के संस्थापक ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की समाधि है, जो शुद्ध सफेद संगमरमर से बनी है।

prem mandir
prem mandir, vrindavan

प्रेम मंदिर एक आध्यात्मिक परिसर है जो वृन्दावन के बाहरी इलाके में 54 एकड़ की जगह पर स्थित है जो दिव्य प्रेम को समर्पित है। मंदिर की संरचना आध्यात्मिक गुरु कृपालु महाराज द्वारा स्थापित की गई थी। संगमरमर से निर्मित मुख्य संरचना और कृष्ण की आकृतियाँ मुख्य मंदिर को ढकती हैं।

वृन्दावन चंद्रोदय मंदिर खजुराहो शैली की वास्तुकला पर आधारित पारंपरिक गोपुरम के साथ एक आधुनिक जियोडेसिक संरचना में स्थित है। इसका निर्माण बेंगलुरु स्थित इस्कॉन गुट में से एक द्वारा किया जा रहा है। ₹300 करोड़ (US$38 मिलियन) की लागत से पूरा होने पर यह दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर होगा।

वृन्दावन(vrindavan)में यमुना के घाट

वृन्दावन(vrindavan)में श्री यमुना के तट पर अनेक घाट हैं। उनमें से कुछ प्रसिद्ध घाट हैं
  • श्रीवराहघाटवृन्दावन(vrindavan)के दक्षिणपश्चिम दिशा में प्राचीन यमुनाजी के तट पर श्रीवराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर भी श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास ही श्रीगौतम मुनि का आश्रम है।
  • कालीयदमनघाटइसका नामान्तर कालीयदह है। यह वराहघाट से लगभग आधे मील उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। यहाँ के प्रसंग के सम्बन्ध में पहले उल्लेख किया जा चुका है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुँच ने पर श्रीकृष्ण को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा ने अपने आसुँओं से तरबतरकर दिया तथा उनके सारे अंगो में इस प्रकार देखने लगे किमेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।महाराज नन्द ने कृष्ण की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान किया था।
  • सूर्यघाटइसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी के प्राणदेवता श्री मदन मोहन जी का मन्दिर है। उसके सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है।
  • युगलघाटसूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्री युगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी जुगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है।
  • श्रीबिहारघाटयुगलघाट के उत्तर में श्रीबिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्रीराधाकृष्ण युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे।
  • श्रीआंधेरघाटयुगलघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आसपास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे।
  • इमलीतला घाटआंधेरघाट के उत्तर में इमलीघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन(vrindavan)वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं।
  • श्रृंगारघाटइमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था।
  • श्रीगोविन्दघाटश्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में यह घाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे।
  • चीर घाट – कौतु की श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं क़दम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चैन या चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है।
  • श्रीभ्रमरघाटचीरघाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। जब किशोरकिशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है।
  • श्रीकेशीघाटश्री वृन्दावन (vrindavan) के उत्तरपश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में यह प्रसिद्ध घाट विराजमान है। इसका हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं।
  • धीरसमीरघाटश्रीचीर घाट वृन्दावन(vrindavan) की उत्तरदिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरेधीरे प्रवाहित होने लगा था।
  • श्रीराधाबागघाटवृन्दावन के पूर्व में यह घाट अवस्थित है। इसका भी वर्णन पहले किया जा चुका है।
  • श्रीपानीघाटइसी घाट से गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था।
  • आदिबद्रीघाटपानीघाट से कुछ दक्षिण में यह घाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण का दर्शन कराया था।
  • श्रीराजघाटआदिबद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन(vrindavan)की दक्षिणपूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर राजघाट है। यहाँ कृष्ण नाविक बनकर सखियों के साथ श्री राधिका को यमुना पार करात थे। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब विलम्ब करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें शीघ्र यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।

इन घाटों के अतिरिक्त (vrindavan)’वृन्दावनकथानामक पुस्तक में और भी 14 घाटों का उल्लेख आता है

(1) महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) प्रस्कन्दन घाट (4) कडिया घाट (5) धूसर घाट (6) नया घाट (7) श्रीजी घाट (8) विहारी जी घाट (9) धरोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) हिम्मत बहादुर घाट (13) चीर या चैन घाट (14) हनुमान घाट।

इन्हें भी देखें:-

tirupati balaji

kedarnath