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nilkanth varni-“नीलकंठ वर्णी“, जिसे “नीलकंठ वर्णी भगवान” या “भगवान स्वामीनारायण” के नाम से भी जाना जाता है, भगवान स्वामीनारायण को संदर्भित करता है, जो एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक नेता और हिंदू संप्रदाय स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक हैं।
उनका जन्म 3 अप्रैल, 1781 को भारत के उत्तर प्रदेश के छपिया गाँव में घनश्याम पांडे के रूप हुआ था। इनके जन्म के पश्चात् ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर “ब्रज उर्धव रेखा” और “कमल के फ़ूल” का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।
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भगवान स्वामीनारायण का प्रारंभिक जीवन गहन आध्यात्मिक अभ्यास और विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन के लिए समर्पित था। कहते हैं कि भाई से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया और ये विरक्त हो गए।
स्वामीनारायण अर्थात् घनश्याम पांडे ने घर त्याग कर भारत दर्शन के लिए निकल पड़े। यहीं से नीलकंठ वर्णी की कहानी या फिर नीलकंठ वर्णी की कथा या फिर नीलकंठ वर्णी का जीवन चरित्र का शुभारम्भ हुआ। 11 साल की उम्र में, उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और “नीलकंठ वर्णी” नाम लेते हुए एक भटकते हुए तपस्वी के रूप में यात्रा शुरू की।
अपनी यात्राओं के दौरान, वह विद्वानों और संतों के साथ गहन आध्यात्मिक चर्चा में लगे रहे।नीलकंठ वर्णी भगवान स्वामिनारायण के बचपन का नाम है। माता पिता के मुर्त्यु के बाद भगवान स्वामीनारायण ने वैरागी वेश धारण कर के पूरे भारत की यात्रा की थी, उस समय लोग उनको नीलकंठ वर्णी के नाम से पुकारते थे।भगवान स्वामीनारायण ने नीलकंठ वर्णी के रूप में भारत के विविध प्रदेश में 12000 किलोमीटर तक यात्रा की थी।
भारत के आलावा उन्होंने नेपाल और चीन का भी प्रवास किया, हिमालय और मुक्तिनाथ में तप किया, इस दौरान उन्होंने बहोत से चमत्कार भी किए, कई लोगो के जीवन परिवर्तन किए। यात्रा के अंत में जब नीलकंठ वर्णी गुजरात के लॉज गांव में पहुंचे तब वहा के प्रसिद्ध संत रामानंद स्वामी को उन्होंने अपना गुरु माना।
एक वर्ष बाद रामानंद स्वामी ने नीलकंठ वर्णी को भगवती दीक्षा दी ओर उनका नाम स्वामिनारायण रखा। तब से वे भगवान स्वामीनारायण के नाम से जाने और पूजे जाने लगे।
1800 में, नीलकंठ वर्णी गुजरात में बस गए और बाद में स्वामीनारायण संप्रदाय की स्थापना की, जो भगवान के प्रति समर्पण, नैतिक मूल्यों और समाज की सेवा को बढ़ावा देता है। उन्होंने अहिंसा, पवित्रता, ईमानदारी और विनम्रता के महत्व का उपदेश दिया। उनकी शिक्षाओं में विभिन्न रूपों में ईश्वर की पूजा और ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध विकसित करने के महत्व पर जोर दिया गया।
भगवान स्वामीनारायण ने कई मंदिरों का निर्माण किया और समाज के उत्थान के लिए कई सामाजिक कल्याण परियोजनाएं शुरू कीं, जैसे शिक्षा को बढ़ावा देना, जल जलाशयों का निर्माण और जरूरतमंदों का समर्थन करना।
स्वामीनारायण सम्प्रदाय का इतिहास
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स्वामीनारायण सम्प्रदाय का इतिहास (swaminarayan sampraday history in hindi) बहुत पुराना हैं। इस सम्प्रदाय को पहले उद्धव संप्रदाय के नाम से जाना जाता था। स्वामीनारायण या नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण संप्रदाय का जनक या संस्थापक माना जाता हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रवर्तक नीलकंठ वर्णी या सहजानंद जी का जन्म उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के छपिया नामक गाँव में हुआ था।
वर्तमान में इस गाँव को स्वामीनारायण छपिया के नाम से जाना जाता हैं। स्वामीनारायण सम्प्रदाय वेद के ऊपर स्थापित किया गया हैं। नीलकंठ वर्णी द्वारा स्थापित स्वामीनारायण सम्प्रदाय से अब तक लाखों की तादाद में लोग जुड़ चुके हैं। सहजानंद जी या नीलकंठ वर्णी द्वारा 6 मंदिरों का निर्माण करवाया था। मुख्य मंदिर आज भी नीलकंठ वर्णी के जन्म स्थल गोंडा,छपिया में स्थित हैं।
स्वामीनारायण (swaminarayan) सम्प्रदाय के मुख्य मंदिर
1. स्वामीनारायण मंदिर छपिया, गोंडा।
2. स्वामीनारायण मंदिर भुज, गुजरात।
3. स्वामीनारायण मंदिर अहमदाबाद गुजरात।
4. स्वामीनारायण मंदिर,धोलका।
5. स्वामीनारायण मंदिर,धोलेरा।
6. स्वामीनारायण मंदिर,जूनागढ़।
7. स्वामीनारायण मंदिर,जेतलपुर।
8. स्वामीनारायण मंदिर,मुली।
9. स्वामीनारायण मंदिर,गढ़डा।
10. स्वामीनारायण मंदिर, वड़ताल।
1 जून, 1830 को गुजरात के गढ़ाडा में उनका निधन हो गया। आज, दुनिया भर में लाखों अनुयायी उन्हें एक दिव्य अवतार के रूप में मानते हैं और स्वामीनारायण संप्रदाय के भीतर उनकी शिक्षाओं का पालन करना जारी रखते हैं। उनकी विरासत गुजरात और उससे आगे के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ताने–बाने का एक अनिवार्य हिस्सा बनी हुई है।
नीलकंठ वर्णी किसका अवतार है?(Nilkanth Varni Kaun the)
नीलकंठ वाणी से ही स्वामीनारायण का नाम निकला है, अर्थात वह स्वयं नारायण के अवतार थे नीलकंठ वर्णी जी 11 वर्ष की उम्र में ही भारत की यात्रा करने के लिए निकल चुके थे उन्होंने भारत भर की यात्रा 7 साल मैं पूरी करी इस तीर्थ यात्रा के बीच स्वामी नारायण जी को अनेक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा इन परिस्थितियों के कारण इनके जीवन में बहुत से बदलाव आए |
नीलकंठ वर्णी कौन थे (nilkanth varni) (स्वामीनारायण का इतिहास)-
- नीलकंठ वर्णी का असली नाम real name of nilkanth varni– घनश्याम पांडे।
- अन्य नाम nilkanth varni other names– भगवान स्वामीनारायण या सहजानंद स्वामी,नीलकंठ वर्णी।
- जन्म तिथि nilkanth varni born– 3 अप्रैल 1781.
- जन्म स्थान nilkanth varni ka janm kaha hua– अयोध्या के पास गोंडा ज़िले के छपिया ग्राम में, उत्तरप्रदेश।
- मृत्यू तिथि nilkanth varni death– 1 जून 1830.
- मृत्यू स्थान– गढ़ादा ( gadhada).
- पिता का नाम nilkanth varni fathers name– श्री हरि प्रसाद राय।
- माता का नाम nilkanth varni mothers name– भक्ति देवी।
- मृत्यू के समय आयु– 49 वर्ष।
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